बंगाल उगल रहा है नोटों के बंडल: राजनीतिक और भाषाई नैतिकता दांव पर, लोकसभा में बयानों का बवंडर…

एक तरफ पश्चिम बंगाल नोट उगल रहा है और दूसरी तरफ लोकसभा में कांग्रेस-भाजपा के झगड़े चल रहे हैं।

दोनों तरफ क्रमश: राजनीतिक नैतिकता और भाषाई नैतिकता दांव पर है।

जहां तक पश्चिम बंगाल का सवाल है, वहां ममता बनर्जी की सरकार के एक बड़े मंत्री रहे पार्थ चटर्जी का भ्रष्टाचार पहली बार सार्वजनिक हो रहा है। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस जब पहली बार राज्य में सत्ता में आई तो कहा गया कि बंगाल के लिए न तो वर्षों सत्ता में रही कांग्रेस का फार्मूला ठीक था, न ही वामपंथियों ने यहां की जनता का भला सोचा।

तृणमूल ही बंगाल और बांग्ला भाषियों के मर्म को करीब से पहचानती है। सब ने मान भी लिया था। लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं हैं तो ममता पर कौन अविश्वास करता। कोई नहीं जानता था कि बंगाल की जनता के विश्वास का बदला इस तरह फ्लेटों में नोटों के बंडल छिपाकर दिया जाएगा।

पार्थ चटर्जी तृणमूल के महासचिव भी हैं और सरकार में भारी भरकम मंत्री भी। हालांकि गिरफ्तारी के हफ्ते भर बाद गुरुवार को पार्थ को मंत्री पद से हटा दिया गया है लेकिन शिक्षक भर्ती घोटाले का जो पैसा उनकी करीबी अर्पिता के यहां से बरामद हो रहा है, उसका हिसाब कौन देगा?

अलग-अलग फ्लैटों की अलमारियों में कैद इन पचास करोड़ से भी ज्यादा रुपयों के पीछे कितने आंसू छिपे हैं? कितने लोगों की भावनाएं आहत हुई होगी? कितने लोगों के जीवनभर की कमाई यहां जाने कब से कैद पड़ी है, इसका जवाब कौन देगा?

जिस अर्पिता के घरों से ये रुपए मिले हैं उसने तो ईडी को साफ कह दिया है कि सारे पैसे पार्थ के ही हैं। उन्हीं के आदमी यहां रखने आते थे और स्वयं पार्थ इन्हें जब-तब चैक भी किया करते थे। अर्पिता का सच तो वही जाने लेकिन ममता बनर्जी भी क्या मंत्री को पद से हटाकर ही इस पूरे मामले से पल्ला झाड़ सकती हैं?

जब यह पैसा लोगों से समेट कर फ्लेटों में जमा हो रहा था तब स्वयं मुख्यमंत्री, उनकी सरकार और पूरा तंत्र क्या कर रहा था? क्या सरकारों के नाक, कान नहीं होते? वे तब क्या कर रहे थे?

आए दिनों दूसरे राज्यों में भ्रष्ट अफसरों की धरपकड़ आपने सुनी होगी लेकिन बंगाल से ऐसी कोई खबर नहीं आती। क्या वहां सारे अफसर, कर्मचारी अब तक ईमानदारी से काम कर रहे थे। अगर हां, तो ये नोट कहां से आए?

प्रदेशों और वहां के लोगों की भावनाओं को क्षेत्रीय दल ज्यादा करीब से समझते हैं, इस वजह से वहां के लोग उन्हें वोट देते रहे हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रीय दलों ने तो अपनी इस खूबी या ताकत को ज्यादा अच्छे से जनता का कण्ठ कसने में लगा दी है।

इतने बड़े घोटाले और भ्रष्टाचार से ममता सरकार पल्ला झाड़कर अनजान नहीं बन सकती। जवाब देना ही होगा। उधर लोकसभा में एक गंभीर विवाद छिड़ गया है। नेताओं के भाषाई नैतिकता भूल जाने के कारण इस तरह के विवाद होते हैं।

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति को राष्ट्र पत्नी कह दिया। वे कह रहे हैं कि गलती से हो गया। बांग्ला भाषी हूं। हिन्दी बोलने में कठिनाई होती है इसलिए गलती हो गई।

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