आखिर क्यों चुनाव से पहले चंद्रशेखर राव (KCR) को नेशनल पॉलिटिक्स में आने की पड़ी जरूरत? समझें वजह…

आंदोलन से निकली तेलंगाना राष्ट्रीय समिति बुधवार को भारत राष्ट्रीय समिति बन गई है।

तेलंगाना राष्ट्रीय समिति की आम सभा की बैठक में सर्वसम्मति से टीआरएस का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति कर दिया गया।

यानी अब ये केवल एक राज्य भर की पार्टी नहीं रही, बल्कि अब यह राष्ट्रीय पार्टी बन चुकी हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने यह भी घोषणा किया कि लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र वे देशभर में भ्रमण करेंगे।

चंद्रशेखर राव जल्द एक बड़ा आयोजन करने वाले है। उनकी कोशिश होगी कि इस कार्यक्रम में विपक्ष के बड़े नेता एक मंच मे मौजूद हो।

हालांकि अब सवाल उठता है कि जब राज्य विधानसभा चुनाव की दहलीज में है तो आखिर चंद्रशेखर राव को राष्ट्रीय पार्टी बनाने की जरूरत क्यों पड़ गई है।

दिसंबर 2023 से पहले राज्य में विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे मे राज्य में फिर से सरकार बनाने की चिंता की बजाय लोकसभा चुनाव में मौजूदा सरकार को चुनौती देने की सोच के पीछे क्या वजह है।

फरवरी 2014 मे तेलंगाना राज्य का गठन किया गया था। तब से लेकर अब तक राज्य में टीआरस की सरकार है और राज्य के गठन के बाद से वहां के चंद्र शेखर राव मुख्यमंत्री हैं।

कौन है विपक्ष में 

तेलंगाना राज्य में विपक्षी पार्टी कांग्रेस है, पर वास्तविक विपक्ष कौन है इसका संकेत 2020 से मिलने शुरू हो गए है। 2020 में बीजेपी तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के GHMC चुनावों में अपना बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 49 सीटों पर जीत दर्ज की थी।

पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को महज 6।30 प्रतिशत वोट मिले थे और उनका एक कैंडिडेट ही चुनाव जीत पाया था, लेकिन विधानसभा चुनाव के 6 महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के चार सांसद चुनकर आए और मत प्रतिशत भी बढ़कर 19% को पार कर गया।

इतना ही नहीं, लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी को कई उपचुनावों में भी बड़ी सफलता मिली। जिस एक जीत ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को उत्साहित कर दिया था, वह थी दुबक्का से एम रघुनंदन राव की जीत।

दुब्बका विधानसभा की सीमाएं मौजूदा मुख्यमंत्री केसीआर और उनके बेटे और टीआरएस के वर्किंग प्रेसिडेंट केटीआर की विधानसभा और टीआरएस के तीसरे सबसे लोकप्रिय नेता हरीश राव की विधानसभा से लगती है, जो टीआरएस के जनरल सेक्रेटरी हैं। 

इसे टीआरएस का गढ़ कहा जाता है। वहीं, ग्रेटर हैदराबाद मुंसिपल कॉरपोरेशन के चुनावी नतीजों ने बीजेपी की उम्मीदों को पंख लगा लिया। इन्हीं दोनों जीत के बाद भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ा कि केसीआर को तेलंगाना में हराया जा सकता है।

तेलंगाना में दो बड़ी जातियां हैं। पहली जाति है मुन्नरकापू और दूसरी बड़ी जाति रेड्डी। इन दोनों जातियों का वोट बैंक 40% से अधिक है।

इसके अलावा वेलमा जाति का भी प्रभाव नकारा नहीं जा सकता है। मुख्यमंत्री केसीआर की जाति भी यही है। बीजेपी अभी राज्य में बिलकुल सधे हुए अंदाज में आगे बढ़ रही है जहां एक तरफ मुन्नरकापू जाति से ताल्लुक रखने वाले बंडी संजय को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।

वहीं, जी किशन रेड्डी को मंत्रिमंडल में जगह देकर इस जाति के वोट बैंक को भी लुभाने की कोशिश कर रही है। ओबीसी वोट बैंक को देखते हुए भाजपा ने इस राज्य के बड़े नेता के लक्ष्मण को उत्तर प्रदेश के कोटे से राज्यसभा भेजा है।

ओवैसी फैक्टर

हैदराबाद के कद्दावर नेता असदुद्दीन ओवैसी का हैदराबाद के करीब  7 से 10 विधानसभा और 2 लोकसभा सीटों पर खासा प्रभाव है और ये वो विधानसभा और लोकसभा सीट है जहां बीजेपी का आंकलन है कि पार्टी अच्छा कर कर सकती है।

दूसरी तरफ बीजेपी ओवैसी के जरिए पूरे प्रदेश में माहौल बना सकती है, जिसका फायदा उन्हें विधानसभा चुनाव में मिल सकता है।

वजह

केसीआर बीजेपी के राज्य में बढ़ते प्रभाव से सकते में हैं। ऐसे उनकी कोशिश राज्य की जनता को ये बताने की है कि उनकी पार्टी न केवल राज्य की बड़ी पार्टी है बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में आकर बीजेपी को चुनौती पेश कर सकती है।

दूसरी तरफ केसीआर जिस तरह से देश के विपक्षी पार्टियों को एक जुट करने की कोशिश कर रहे है, ये भी दिखाने के लिए है कि उनके राज्य का ये नेता राष्ट्रीय पटल पर अलग पहचान रखने वाले हैँ और विपक्ष में नेतृत्व करने की क्षमता इनमें है।

केसीआर की पार्टी को लगता है कि इन सारी बातों का फायदा राज्य में उनकी खोई हुई प्रतिष्ठा और जनाधार उन्हें वापस दिला सकती है।

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