कमजोर विपक्ष से BJP की राह हुई आसान? 5 साल में कितना बदला गुजरात का मैदान…

2017 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 99 सीटें अपने नाम की थी।

जबकि, कांग्रेस के खाते में 77 सीटें आई थीं। आंकड़ों के लिहाज से साल 1995 से लेकर अब तक यह भाजपा का सबसे खराब प्रदर्शन था।

जबकि, कांग्रेस ने 32 सालों का सर्वश्रेष्ठ दिया था। राज्य में मुख्य मुकाबला इन दोनों पार्टियों के ही बीच रहा, लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी की एंट्री समीकरण बदल सकती है।

5 सालों में कितना बदला गुजरात का चुनावी मैदान?
2017 चुनाव के दौरान राज्य में पाटीदार आंदोलन, वस्तु एवं सेवा कर (GST) और सत्ता विरोधी लहर चुनौतियां मौजूद थे। हालांकि, जानकारों का मानना है कि 5 सालों में हालात बदल गए हैं। कहा जा रहा है कि पाटीदार आंदोलन ने रफ्तार खो दी है, कारोबारी जीएसटी के आदि हो गए हैं और भाजपा ने 2021 में पूरी कैबिनेट को बदलकर सत्ता विरोधी लहर का जवाब पेश कर दिया है।

राजनीतिक जानकार घनश्याम शाह का कहना है, ‘बीते चुनाव के ये मुद्दे इस बार नदारद हैं।’ हालांकि, उन्होंने कहा कि बेरोजगारी और महंगाई दो बड़े मुद्दे हैं, जिनपर चुनाव लड़ा जा सकता है।

गुजरात चुनाव में और क्या है खास
इस बार मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के गृह राज्य में करीब तीन दशकों से कांग्रेस ही भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंदी बनी हुई है। वहां, अब आप भी दस्तक दे रही है। कई जानकारों का मानना है कि चुनाव में आप का फायदा कांग्रेस का नुकसान साबित हो सकता है।

दोनों दलों के हाल
राज्य में कांग्रेस का अभियान कमजोर नजर आ रहा है। बीते पांच सालों में पार्टी 16 विधायकों को गंवा चुकी है। वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आप गुजरात में आक्रामक भूमिका में है। अगस्त से लेकर अब तक हर महीने केजरीवाल दो बार राज्य का दौरा करते रहे हैं। इस दौरान उन्होंने भ्रष्टाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी को मुद्दा बनाने की कोशिश की। साथ ही मुफ्त बिजली, मुफ्त शिक्षा और बेरोजगार युवाओं को मासिक भत्ता देने का वादा किया।  पार्टी 108 सीटों पर उम्मीदवार उतार चुकी है। भाजपा और कांग्रेस के नामों का ऐलान बाकी है।

भाजपा की तैयारी
साल 2002 में मोदी की अगुवाई में पार्टी ने 127 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार दल इससे बेहतर प्रदर्शन की कोशिश में है। पार्टी नेताओं का मानना है कि इसके लिए परिस्थितियां भी हैं, क्योंकि आप अभी उतनी मजबूत नहीं है और कांग्रेस कमजोर हो रही है। साल 2017 में कांग्रेस के पास हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवाणी का समर्थन था। हालांकि, इनमें से दो भाजपा के साथ हो लिए। कहा जाता है कि मेवाणी का असर दलितों के एक वर्ग तक ही सीमित है, जो गुजरात की आबादी का 6.74 फीसदी है।

तीन चुनौतियां कैसे हुईं पार
2015 में शुरू हुए पाटीदार आंदोलन ने पटेल को चर्चा में ला दिया था। हालांकि, 2017 चुनाव के बाद आंदोलन धीमा हुआ और कई पटेल नेताओं ने भाजपा का दाम थामा। साल 2020 में हार्दिक को कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन इस साल जून में उन्होंने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया।

बीते चुनाव के दौरान कांग्रेस ने जीएसटी का मुद्दा उठाया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तब इसे ‘गब्बर सिंह टैक्स’ बताया था। हालांकि, इसके बावजूद भाजपा ने सूरत और वडोदरा जैसे शहरी कारोबारी इलाकों में अच्छा प्रदर्शन किया। जबकि, राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस की स्थिति मजबूत रही।

इसके अलावा पार्टी ने विजय रुपाणी के नेतृत्व वाली कैबिनेट को बदलकर सत्ता विरोधी लहर से निपटने की कोशिश की। खबरें हैं कि पार्टी सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने के लिए कम से कम 30 मौजूदा विधायकों के टिकट काट सकती है।

गुजरात चुनाव कार्यक्रम
गुरुवार को आयोग ने चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। इसके तहत राज्य की 182 सीटों वाली विधानसभा के लिए दो चरणों में मतदान होगा। पहले चरण में 89 सीटों पर वोटिंग 1 दिसंबर को होगी। जबकि, मतदाता दूसरे चरण में 93 सीटों पर 5 दिसंबर को वोट डालेंगे। मतगणना हिमाचल प्रदेश के साथ ही 8 दिसंबर को होगी। पहाड़ी राज्य में 12 नवंबर को मतदान होगा।

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