महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद को क्यों तूल देना चाहता है विपक्ष? अजीत पवार बोले-सार्वजनिक हो अमित शाह की बात…

कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच सीमा विवाद 6 दशक पुराना है। 1957 से ही दोनों राज्य कई इलाकों पर अपना दावा करते हैं।

दूसरी तरफ कर्नाटक में 2023 में चुनाव है। ऐसे में विपक्ष इस मामले को तूल देने में कसर नहीं छोड़ रहा है।

एनसीपी नेता शरद पवार ने कहा है कि गृह मंत्री अमित शाह ने इस मामले में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से जो बात की है, उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, अगर राज्य सरकार कोई प्रस्ताव लाती है तो हम उसका समर्थन करेंगे। पवार ने कहा कि हमारी पुरानी मांग रही है कि बेलागावी, नेपानी, कारवार और अन्य सीमावर्ती इलाकों को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए। 

इसी बीच महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच सीमा के मामले को लेकर प्रस्ताव शीतकालीन सत्र में विधानसभा में पास किया जाएगा।

उन्होंने कहा, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे विधानसभा में प्रस्ताव पेश करेंगे। बता दें कि 14 दिसंबर को गृह मंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र औऱ कर्नाट के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की थी।

उन्होंने दोनों ही पक्षों से कहा था कि जब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता वे दोनों ही कोई भी दावा पेश ना करें। दरअसल बात यह है कि दोनों ही राज्यों में भाजपा की ही सरकार है।  ऐसे में विपक्ष मामले को तूल देने की कोशिश कर रहा है।

बैठक के बाद अमित शाह ने कहा था, सकारात्म माहौल में महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद को लेकर चर्चा हुई।

उन्होंने कहा, मैंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, कर्नाटक के मुख्यमंत्री, गृह मंत्री और अन्य वरिष्ठ नेताओं को बुलाया था।

दोनों ही राज्य इस बात पर सहमत हुए कि संवैधानिक तरीके से मुद्दे का हल निकाला जाएगा। .

शाह ने विपक्षी दलों से भी अपील की कि इस मामले का राजनीतीकरण ना करें। उन्होंने कहा कि कमेटी इस बारे में चर्चा करेगी और हल निकालने की कोशिश करेगी।

साथ ही सुप्रीम कोर्ट भी अपना फैसला देगा। शाह ने कहा, मुझे विश्वास है कि एसीपी, का्ंग्रेस और उद्धव ठाकरे भी इस मुद्दे को लेकर हमारा साथ देंगे।

बता दें कि स्टेट रिकग्नाइजेशन ऐक्ट 1956 के लागू होने के बाद से ही महाराष्ट्र सीमा को सुधारने की बात कह रहा है। इसके बाद दोनों ही प्रदेशों ने चार सदस्यों की समिति बनाई है।

महाराष्ट्र ने 260 गांव देने की बात कही थी लेकिन कर्नाटक ने यह बात नहीं मानी। इसके बाद दोनों ही प्रदेश मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। 

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