कोविड से बेहाल चीन को दक्षिणी मोर्चे पर पटखनी देने की तैयारी,जानें- श्रीलंका में भारत की क्या रणनीति…

इस साल की शुरुआत में जब श्रीलंका अपने सात दशकों में सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा था।

देश में गृहयुद्ध के हालात पैदा हो गए थे। लोग ईंधन, दवाइयों और जरूरी चीजों के लिए सड़कों पर उतरकर संघर्ष करने लगे थे, तब भारत ने पड़ोसी धर्म निभाते हुए मामले में हस्तेक्षेप किया और बड़े पैमाने पर उसकी आर्थिक मदद की।

भारत ने जनवरी से जुलाई के बीच श्रीलंका को लगभग 4 बिलियन डॉलर की सहायता उपलब्ध कराई थी। इतना ही नहीं भारत ने श्रीलंका के 2.2 करोड़ लोगों के लिए जरूरी दवाओं को ले जाने के लिए एक युद्धपोत भी भेजा था।

अब, श्रीलंका को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने $2.9 बिलियन का कर्ज देने की सहमति जता दी है और इसकी अर्थव्यवस्था लगभग स्थिर हो गई है, तब भारत क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए और कोविड से जार-जार चीन की स्थिति को देखते हुए श्रीलंका में महत्वाकांक्षी दीर्घकालिक निवेशों को धरातल पर उतारने की कोशिश कर रहा है। श्रीलंकाई सरकार के एक मंत्री ने रॉयटर्स से इसकी जानकारी साझा की है।

श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने इस महीने एक साक्षात्कार में कहा,”अभी हम जो देख रहे हैं, वह भारत की तरफ से होने वाला निवेश है।

वर्तमान में भारत की तरफ से 1 बिलियन डॉलर से भी अधिक की परियोजनाओं की एक श्रृंखला की चर्चा है,जो श्रीलंका में उनकी उपस्थिति को मजबूत करने में मदद करेगा।  जितना हो सके वो उतना निवेश करने को तैयार हैं।”

साबरी ने कहा, “भारत शायद सुरक्षा चिंताओं के कारण और रणनीतिक रूप से श्रीलंका में निलेश करने पर विचार कर रहा है।” हालांकि, भारत के विदेश मंत्रालय ने श्रीलंका में अपनी योजनाओं और रणनीतिक उद्देश्यों पर रॉयटर्स के सवालों का जवाब नहीं दिया।

इस मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने रॉयटर्स को बताया कि नई दिल्ली हमेशा क्षेत्रीय सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करता रहा है। चीन के साथ उनकी हिमालयी सीमा पर लगातार टकराव के बाद भारत दक्षिणी मोर्चे पर भी किलेबंदी की रणनीति बना रहा है।

सूत्र ने कहा,”इसमें कोई दो राय नहीं है कि सुरक्षा चिंताओं के कारण भारत श्रीलंका में दीर्घकालिक रणनीति के तहत योजना बना रहा है और निवेश कर रहा है। द्वीपीय देश भी उत्तर में अक्षय ऊर्जा और बिजली परियोजनाओं की स्थापना के लिए भारतीय निवेश पर नजरें टिकाए हुए है।इसके अलावा श्रीलंका पूर्वोत्तर में त्रिंकोमाली में बंदरगाह के विस्तार और विकास पर भी नई दिल्ली के साथ काम करने का इच्छुक रहा है।”

चीन पिछले 15 वर्षों में श्रीलंका के दक्षिण में व्यापक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का विकास करता रहा है। ऐसे में श्रीलंका के उत्तरी क्षेत्र में स्थित परियोजनाओं में भारत का निवेश  क्षेत्रीय संतुलन की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *