इंसानों की ही तरह जानवरों में भी होते हैं इमोशन और फीलिंग्स : बॉम्बे हाई कोर्ट…

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने कहा है कि जानवरों में भी इंसानों की तरह इमोशन और फीलिंग्स होते हैं, इसलिए  जानवरों की क्रूरता से संबंधित मामलों को बड़ी संवेदनशीलता के साथ निपटाया जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि चूंकि जानवर अपने अधिकारों की बात कर नहीं सकते इसलिए उनसे जुड़े मामलों की सुनवाई में मानवीय संवेदनशीलता की जरूरत है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस जीए सनाप की सिंगल बेंच ने कहा कि चूंकि जानवर बोल नहीं सकते इसलिए वे अपने अधिकारों की मांग नहीं कर सकते हैं। 

जस्टिस सनाप ने टिप्पणी की, “जानवरों में इंसान के समान ही भावनाएं और इंद्रियां होती हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि जानवर बोल नहीं सकते। हालांकि उनके अधिकारों को कानून के तहत मान्यता प्राप्त है लेकिन वे उसका दावा नहीं कर सकते। इसलिए, जानवरों के अधिकार, जानवरों के कल्याण और जानवरों की सुरक्षा का ध्यान कानून के अनुसार संबंधित पक्षों को रखना होगा। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि जानवरों के प्रति किसी भी रूप में क्रूरता के मामले पर विचार करते हुए केस को बड़ी संवेदनशीलता के साथ देखा जाना चाहिए और उसी के अनुसार उसमें फैसला किया जाना चाहिए।”

अदालत की यह टिप्पणी 39 गोवंश की कस्टडी के लिए आवेदन करने वाले कुछ लोगों की याचिका पर सुनवाई के दौरान आई। याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उसके पास उन जानवरों की बिक्री और खरीद का लाइसेंस है।

इससे पहले पुलिस अधिकारियों ने अवैध और अमानवीय तरीके से ट्रकों में ले जाए जा रहे इन पशुओं को पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत जब्त कर लिया था। उस कार्रवाई को अदालत में चुनौती दी गई थी।

याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट से पशुओं की कस्टडी की मांग की थी और दलील दी थी कि वह किसी अपराध में आरोपी नहीं हैं। इससे पहले उनकी याचिका नागपुर की अदालत ने खारिज कर दी थी और नागपुर की सत्र जिला न्यायालय ने भी उसे खारिज कर दिया था। उसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि चूंकि मामले पर अंतिम फैसला आने में अभी समय लग सकता है।लिहाजा, जानवरों को अंतरिम रूप से उन्हें वापस सौंप दिया जाया। ताकि याचिकाकर्ता को दुहने से होने वाली आय का लाभ मिल सके।

कोर्ट ने कहा कि ढोए जा रहे पशुओं की संख्या वाहनों की क्षमता और पशु परिवहन नियम, 1978 के तहत निर्धारित सीमा से अधिक थी।

ट्रकों में नियमानुसार चारे-पानी की भी व्यवस्था नहीं थी। जस्टिस सनाप ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि जानवरों के प्रति क्रूरता के आरोपों से जुड़े मामलों में, जानवरों को उसके मालिकों के हिरासत में सौंपना उचित नहीं है। हाई कोर्ट ने इसी आधार पर  याचिकाकर्ताओं को जानवरों की कस्टडी देने से इनकार कर दिया।

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