बस्तर दशहरा के लिए हुई लकड़ियों की कटाई : इसी लकड़ी से रथ निर्माण के लिए बनेगा औजार, 17 जुलाई को होगा पाट जात्रा का आयोजन…..

बस्तर दशहरा के लिए हुई लकड़ियों की कटाई : इसी लकड़ी से रथ निर्माण के लिए बनेगा औजार, 17 जुलाई को होगा पाट जात्रा का आयोजन

जगदलपुर : विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में रथ निर्माण के लिए औजार बनाने के लिए लकड़ियों की कटाई हो गई है। साथ ही लकड़ियां जगदलपुर लाई जा चुकी हैं।

अब 17 जुलाई को पाट जात्रा विधान के साथ ही बस्तर दशहरा का आगाज किया जाएगा। इस बार बस्तर दशहरा 75 नहीं बल्कि 107 दिनों का होगा। अधिकमास के चलते दिन बढ़ गए हैं।

दरअसल, सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार जिले के बिल्लोरी गांव से लकड़ियां लाई गईं हैं। पाट जात्रा विधान को पूरा करने के लिए ग्रामीणों ने पहले लकड़ी की गोलाई नापी। फिर पुराने औजारों का उपयोग करते हुए चार फीट लंबे और 3 फीट मोटाई का एक गोला काटा गया। राजस्व और वन अमले के साथ इस काम के लिए करीब 20 से ज्यादा ग्रामीण जुटे रहे।

जिसके बाद जगदलपुर में स्थित सिरहसार भवन के पास लाकर लकड़ी को रखा गया है। अब 17 तारीख को होने वाले पाट जात्रा विधान में लकड़ियों की पूजा अर्चना की जाएगी। जिसके बाद रथ निर्माण के लिए इस लकड़ी से औजार बनाए जाएंगे। यह परंपरा पिछले 615 सालों से चली आ रही है। साल के पेड़ की लकड़ी से औजार बनाया जाएगा।

साल के पेड़ की लकड़ी से औजार बनाया जाएगा।

जानिए किस दिन होंगे कौन से विधान

  • 17 जुलाई को पाट जात्रा विधान।
  • 27 सितंबर को डेरी गड़ाई रस्म।
  • 14 अक्टूबर को काछनगादी पूजा।
  • 15 अक्टूबर को कलश स्थापना और जोगी बिठाई पूजा विधान।
  • 21 अक्टूबर बेल पूजा विधान, रथ परिक्रमा विधान।
  • 22 अक्टूबर को निशा यात्रा विधान, महालक्ष्मी पूजा विधान।
  • 23 अक्टूबर को कुंवारी पूजा विधान, जोगी उठाई और मावली प्रभाव पूजा विधान।
  • 24 अक्टूबर भीतर रैनी पूजा विधान, रथ परिक्रमा।
  • 26 अक्टूबर को काछन जात्रा।
  • 27 अक्टूबर को कुटुंब जात्रा।

यह है मान्यता

दरसअल, तत्कालीन राजा पुरुषोत्तम देव के शासनकाल में उन दिनों चक्रकोट की राजधानी बड़े डोंगर थी। चक्रकोट एक स्वतंत्र राज्य था। राजा पुरूषोत्तम देव भगवान जगन्नाथ के भक्त थे। बस्तर इतिहास के अनुसार वर्ष 1408 के कुछ समय पश्चात राजा पुरषोत्तम देव ने जगन्नाथपुरी की पदयात्रा की थी।

वहां भगवान जगन्नााथ की कृपा से उन्हें रथपति की उपाधि दी गई थी। उपाधि के साथ उन्हें 16 पहियों वाला विशाल रथ भी भेंट किया गया था। उन दिनों बस्तर के किसी भी इलाके की सड़कों में इन्हें चलाना मुश्किल था।

तीन हिस्सों में बांटा गया था रथ

16 पहियों वाले विशाल रथ को तीन हिस्सों में बांटा गया था। चार पहियों वाला रथ भगवान जगन्नााथ के लिए बनाया गया। वहीं बस्तर दशहरा के लिए दो रथ बनाए गए। जिनमें से एक फूल रथ और दूसरा विजय रथ है।

फूलरथ तिथि अनुसार 5-6 दिनों तक चलता है। इसमें चार पहिए होते हैं, वहीं दशहरा और दूसरे दिन चलने वाले आठ पहिए के विशाल रथ को विजय रथ कहते हैं। इस रथ संचलन भीतर रैनी और बाहर रैनी कहते हैं। बस्तर दशहरा में विभिन्न रस्में होती हैं जो अपने आप में अनूठी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *