बेहद ‘डरपोक’ था 60 लाख यहूदियों की हत्या करवाने वाला एडोल्फ हिटलर, फौज में भर्ती होने के नाम पर छोड़ दिया था शहर…

दुनिया के तानाशाहो में एडोल्फ हिटलर का नाम सबसे पहले लिया जाता है। दुनियाभर में आज भी तानाशाह हिटलर को लेकर लोग दो धड़ों में बंटे हुए हैं।

जहां एक तरफ उसकी छवि क्रूर तानाशाह की है तो दूसरी तरफ उसे हीरो मानने वाले लोग भी कम नहीं हैं। हालांकि होलोकास्ट को को भी नजरअंदाज नहीं कर सकता।

जर्मनी की सत्ता पर काबिज होने के बाद हिटलर ने मात्र 6 साल में 60 लाख यहूदियों की हत्या करवा दी। आपको जानकर हैरानी होगी कि दूसरे विश्वयुद्ध के लिए काफी हद तक जिम्मेदार और पहले विश्वयुद्ध में भी शामिल होने वाला हिटलर अपनी मौत से बहुत डरता था।

कहते हैं कि उसका खाना भी पहले कोई और चखता था और उसके बाद वह खुद खाता था। 

फौज में शामिल होने के नाम से भागा
हिटलर को चित्रकार बनने का शौक था और वह वियना फाइन आर्ट्स अकादमी में एडमिशनलेना चाहता था। उसने दो बार कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुआ।

इसके बाद वह घरों में पेंट करने का काम करने लगा। इससे थोड़ी बहुत आमदनी होती थी पर यह पर्याप्त नहीं थी। उसके पिता एक सिविल सर्वेंट थे।

हिटलर की सोच हमेशा से अजीब ही थी। वह कई रात रेलवे स्टेशन पर सोया पर कभी कोई दूसरा काम नहीं किया। उसे लगता था कि यह दुनिया उसकी बदहाली के लिए जिम्मेदार है। वह यहूदियों को दुनियाभर की समस्याओं के लिए जिम्मेदार बताता था। 

विएना में रहने के दौरान उसे फौज से बुलावा आ गया। वहां हर किसी को फौज में सेवा देना जरूरी होता था। हालांकि ‘डरपोक’ हिटलर विएना से भागकर म्यूनिक आ गया।

पुलिस ने उसका पीछा किया और म्यूनिक में वह पकड़ा गया। यहां उसकी किस्मत ने साथ दे दिया और वह मेडिकल में अनफिट पाया गया।

खुद को महान योद्धा बताने वाला हिटलर फौज में जाने से बच गया। उसे अपने पिता की संपत्ति मिल गई और वह मम्यूनिक में रहने लगा। 

पहले विश्वयुद्ध ने बदल दी हिटलर की किस्मत
पहले विश्व युद्ध के दौरान जब उसकी फौज में भर्ती का पत्र आया तो वह बेहद खुश हुआ। शायद जर्मनी के महान साम्राज्य के बारे में भाषण देते-देते अब उसमें फौज में जाने की भावना प्रबल हो गई थी।

वहीं दूसरी तरफ यह भी थ्योरी है कि आर्मी में जाने के प्रति उसके साथी काफी उत्सुक थे और साथ में वह भी चला गया। शुरू में हिटलर फौज मे संदेश वाहक का काम करता था।

हालांकि अपने सीनियर की जांच बचाने के लिए उसे प्रमोशन मिला और उसे आयरन क्रॉस सम्मान भी दिया गया।

जंग के दौरान किस्मत से वह बच गया। लेकिन हिटलर का मानना था कि ईश्वर ने उसे किसी और काम के लिए भेजा है इसलिए उसकी जान बचा रहा है।

पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की हार हुई तो उसने इस हार का जिम्मेदार भी यहूदियों को माना। हालांकि ब्रिटेन और फ्रांस उस वक्त जर्मनी से ज्यादा शक्तिशाली थे। 

नफरत ने ही दे दी सत्ता
हिटलर के अंदर जो नफरत की भावना थी वही उसके तानाशाह बनने की वजह बन गई। जर्मनी की बार के बाद हिटलर नफरती भाषण देने लगा।

उसके विचारों से मेल खाने वाले लोग साथ आने लगे। लोगों को हिटलर की बात पर विश्वास होने लगा। उसने अपनी नाजी पार्टी बना ली।

1928 में चुनाव लड़ा तो पार्टी को केवल 2.6 वोट मिले। अगले पांच साल में हिटलर के भाषणों ने कमाल किया और वह अपनी पार्टी के जानेमाने नेता बन गए।

1929 में जर्मनी की अर्थव्यवस्था बदहाल हुई तो हिटलर के बड़बोलेपन ने काम कर दिखाया। लोगों को लगने लगा कि अब हिटलर ही उन्हें इस समस्या से निकाल सकता है।

1933 में सत्ता में आने का बाद उसने अपना निरंकुश शासन स्थापित कर दिया। 

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