MBBS का कीमती सपना, इस कॉलेज में है सबसे महंगी डिग्री; चौंका देगा आंकड़ा…

MBBS की शुरुआत करना यानी डॉक्टर बनने की ओर एक कदम बढ़ाना।

अब अगर भारत में इस शिक्षा में होने वाले खर्च की ओर देखें, तो शायद कई परिवारों के लिए बच्चों को डॉक्टर बनाना आसान नहीं है।

खबर है कि नवी मुंबई के डीवाई पाटिल मेडिकल कॉलेज में मेडिकल डिग्री हासिल करना सबसे महंगा है।

यहां एक साल की फीस 30 लाख रुपये से भी ज्यादा है और MBBS पूरा होने में करीब 4 वर्षों का समय लगता है।

और भी हैं खर्च
इस फीस में छात्रों का हॉस्टल चार्ज भी शामिल है और डिग्री हासिल करते-करते खर्च करीब 1 करोड़ 35 लाख रुपये हो जाता है।

खास बात है कि यह संस्थान 2.8 लाख रुपये की भी एक फीस वसूलता है, जिसका भुगतान दाखिले के समय किया जाता है। विश्वविद्यालय के अधिकारी इसकी वजह लाइब्रेरी, लैब, इंफ्रास्ट्रक्चर में होने वाले निवेश समेत अन्य खर्चों को बताते हैं।

कई संस्थानों की यही कहानी
इसके अलावा भी देश में ऐसी कई डीम्ड यूनिवर्सिटी हैं, जो हर साल लाख नहीं लाखों की फीस लेती हैं। इनमें सबसे ज्यादा कॉलेजों की संख्या तमिलनाडु में हैं, जो हर साल 25 लाख रुपये से ज्यादा की फीस लेते हैं।

खबर है कि चेन्नई के श्रीरामचंद्र मेडिकल कॉलेज की फीस 28.1 लाख रुपये हैं। वहीं, चेन्नई के ही एसआरएम मेडिकल कॉलेज में हर साल 27.2 लाख रुपये फीस ली जाती है।

हालांकि, इनमें वार्षिक ट्यूशन फीस, हॉस्टल फीस शामिल होती है।

इधर, अगर देश के 5 सबसे महंगे डीम्ड मेडिकल कॉलेजों में महाराष्ट्र के तीन कॉलेज शुमार हैं। यहां हर साल 25 लाख रुपये से ज्यादा फीस ली जाती है।

इनमें ट्यूशन, हॉस्टल भी होती है। इसके अलावा कुछ कॉलेज कॉशन मनी, यूनिवर्सिटी फीस, रिफंडेबल डिपॉजिट जैसी रकम भी जमा कराते हैं।

खास बात है कि कुछ कॉलेजों में सालाना ट्यूशन फीस पूरे कोर्स में एक जैसी ही रहती है, लेकिन अन्य में हर साल 2-3 फीसदी बढ़ जाती है।

सरकारी कॉलेज
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के सरकारी कॉलेज में मेडिकल डिग्री के लिए हर साल 1.3 लाख रुपये ही खर्च करने होते हैं।

इसके अलावा ऐसे भी कई राज्य हैं, जहां कॉलेज फीस 50 हजार रुपये प्रतिवर्ष से ज्यादा नहीं है।

बीते साल फरवरी में ही नेशनल मेडिकल कमीशन यानी NMC ने गजट जारी किया था, जिसमें निजी और डीम्ड कॉलेजों की 50 फीसदी सीटों पर फीस सरकारी कॉलेज के बराबर करने की ही बात कही गई थी, लेकिन अब तक इसे लागू नहीं किया गया है।

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