जैसे ही कार में रखा था कदम, पुलिसकर्मी ने खुद को उड़ा लिया; पंजाब CM बेअंत सिंह की दर्दनाक हत्या की चर्चा क्यों…

अमेरिकी खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नून ने पिछले दिनों एक वीडियो जारी कर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और डीजीपी को जान से मारने की धमकी दी है।

इसके साथ ही खालिस्तानी आतंकी ने भगवंत मान सिंह सरकार की तुलना राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के कार्यकाल से की है, जिनकी हत्या खालिस्तानी आतंकियों ने मानव बम विस्फोट में कर दी थी।

सिंह की हत्या अलगाववादी समूह बब्बर खालसा इंटरनेशनल द्वारा अंजाम दी गई थी।

कैसे हुई थी बेअंत सिंह की हत्या
31 अगस्त 1995 को पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह रोज की तरह सचिवालय में काम कर रहे थे। सिंह कुछ कागजात पर दस्तखत करने के लिए बाहर जा रहे थे।

जैसे ही उन्होंने सचिवालय से निकलकर अपनी आधिकारिक सफेद एम्बेस्डर कार में कदम रखा, वैसे ही वहां मौजूद पंजाब पुलिस का कर्मी दिलावर सिंह बब्बर ने अपने ऊपर बंधे बम से विस्फोट कर दिया।

इस मानव बम विस्फोट में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह, उनके स्टाफ और सुरक्षाकर्मियों समेत कुल सत्रह लोगों की मौत हो गई थी। धमाका इतना तेज था कि उसकी गूंज दूर तक सुनाई दी थी।

जब धुएं और धूल का गुबार हटा तो कई लोगों के जिस्म के चीथड़े बिखरे पड़े थे। हर तरफ खून नजर आ रहा था।

बेअंत सिंह की हत्या की पृष्ठभूमि
31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में भड़के सिख विरोधी दंगों में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3,340 सिख मारे गए थे।

1990 के दशक में उथल-पुथल के दिनों के दौरान, देश में हिंसा का एक खूनी चक्र छिड़ गया था जिसमें सिख आतंकियों ने पंजाब पुलिस के कई कर्मियों और अधिकारियों की हत्या कर दी थी।

ये हत्याएं सिख आतंकवादियों द्वारा सिखों की हत्याओं में पुलिस अधिकारियों की कथित भूमिका के प्रतिशोध के रूप में की गई थीं।

1990 के दशक में पंजाब उग्रवाद की चपेट में था। पंजाब पर मंडरा रहे भय और खतरे के माहौल के कारण 1987 से 1992 तक राज्य को राष्ट्रपति शासन के अधीन रखा गया था।

1992 में जब पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए, तब केंद्र द्वारा पर्याप्त पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती के बावजूद, भय के कारण सिर्फ 24% मतदाताओं ने ही वोट किया था।

उन चुनावों के बाद बेअंत सिंह 1992 में मुख्यमंत्री बने थे लेकिन तीन साल बाद ही उनकी हत्या कर दी गई। कांग्रेस नेता ने ऐसे समय में राज्य की बागडोर संभाली थी, जब पंजाब आतंकवाद के एक दशक लंबे तूफान के बाद सामान्य स्थिति की ओर बढ़ रहा था जिसने राज्य के सामाजिक-धार्मिक और राजनीतिक परिस्थितियों को बदल दिया था। 

बेअंत सिंह ने क्या किया था?
बेअंत सिंह की सरकार ने राज्य से आतंकवादियों के खात्मे के लिए तत्कालीन डीजीपी केपीएस गिल को पूरी छूट दे दी थी। गिल ने ऑपरेशन चलाकर तब कई आतंकवादियों का सफाया कर दिया था और बड़ी संख्या में लोग देश छोड़कर उत्तरी अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और अन्य यूरोपीय देशों में भाग गए थे।

इसके प्रतिशोध में, वधावा सिंह के नेतृत्व वाले कट्टरपंथी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल ने इंग्लैंड में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह को खत्म करने की साजिश रची थी। बब्बर खालसा के नेताओं ने तब पंजाब के युवाओं के एक समूह के मन में जहर भरकर तत्कालीन सीएम की हत्या के लिए प्रेरित किया था।

जांच रिपोर्ट में क्या निकला था
मुख्यमंत्री की हत्या की जांच के लिए बनी टीम के अधिकारियों ने पंजाब सचिवालय के बाहर हुए आत्मघाती बम विस्फोट में 15 लोगों को आरोपी बनाया था।

उनमें से जगतार सिंह हवारा और बलवंत सिंह राजोआना को मृत्युदंड दिया गया था; गुरमीत सिंह, लखविंदर सिंह और शमशेर सिंह को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी, जबकि दो आरोपियों नवजोत सिंह और नसीब सिंह को ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया था।

आरोपियों को छुड़ाने के लिए सियासी घमासान
कौमी इंसाफ मोर्चा के बैनर तले सिख प्रदर्शनकारियों ने तब एक साल से अधिक समय तक चंडीगढ़ के बाहरी इलाके में इन आरोपियों की उनके ‘अच्छे आचरण’ के आधार पर रिहाई की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था।

राजोआना पंजाब पुलिस का एक पूर्व कॉन्स्टेबल और बब्बर खालसा का एक बॉम्बर था। उसकी  रिहाई की मांग ने तब पंजाब से दिल्ली तक राजनीतिक घमासान मचा दिया था। शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के आधार पर ही राजोआना को रिहा करने की मांग की थी, जिसकी कांग्रेस ने तीखी आलोचना की थी।

पिछले साल मई में, सुप्रीम कोर्ट ने राजोआना की मौत की सजा को कम करने से इनकार कर दिया, जो 27 साल से जेल में बंद है। सीबीआई अदालत ने जुलाई 2007 में बेअंत सिंह की हत्या में शामिल होने के आरोप में उसे मौत की सजा सुनाई थी।

सिखों की सर्वोच्च संस्था – शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) – पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में गुरुद्वारों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार संस्था – की अपील के बाद 2012 में गृह मंत्रालय के एक फैसले के बाद उसकी फांसी पर रोक लगा दी गई थी।

राजोआना के दांव
राजोआना ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की थी, जिसमें दावा किया गया था कि गुरु नानक के 550वें प्रकाश पर्व के हिस्से के रूप में केंद्र द्वारा 2019 में मीडिया में उनकी मौत की सजा को कम करने की घोषणा की गई थी लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिल सकी है।

तब केंद्रीय गृह मंत्री ने उस समय संसद में एक बयान दिया था, जिसमें बताया गया था कि राजोआना की सजा कम करने का कोई निर्णय नहीं लिया गया है।

इस बीच, हवारा, जो फिलहाल तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है, को 2015 में अमृतसर में सरबत खालसा (सिख मण्डली) द्वारा सिखों की सर्वोच्च अस्थायी सीट अकाल तख्त का जत्थेदार (मुख्य पुजारी) घोषित कर दिया गया।

फिलहाल सरबत खालसा की इस घोषणा को एसजीपीसी से मान्यता मिलने का इंतजार है।

बेअंत सिंह की हत्या मामले में हवारा को भी सीबीआई कोर्ट ने 2007 में मौत की सजा सुनाई थी। बाद में उसने  पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में अपील की, जिसने अक्टूबर 2010 में उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।

इसके बाद उसने रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जहां उसका मामला फिलहाल लंबित है। जगतार सिंह तारा, जिसे 1995 में गिरफ्तार किया गया था, वह भी चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है।

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