बसपा सांसदों में चुनाव से पहले भगदड़, तीन और भाजपा में जाने को तैयार, बचेंगे सिर्फ 2 संसद…

मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने अकेले ही लोकसभा चुनाव में उतरने का फैसला लिया है, लेकिन पार्टी के नेता इससे सहमत नजर नहीं आ रहे हैं।

इसी के चलते पार्टी में भगदड़ के हालात पैदा हो रहे हैं। पार्टी सांसद रितेश पांडेय ने शुक्रवार को भाजपा का दामन थाम लिया।

उन्हें डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक, प्रदेश अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह और यूपी प्रभारी बैजयंत पांडा की मौजूदगी में भाजपा में एंट्री मिली।

यही नहीं अब चर्चा है कि बसपा के तीन और सांसद भाजपा का रुख करने वाले हैं। इसके अलावा दो सांसद कांग्रेस के संपर्क में हैं और वेस्ट यूपी के एक सांसद रालोद के साथ जा सकते हैं।

भाजपा के साथ गठबंधन में रालोद को उनकी सीट मिलती दिख रही है।

ऐसे में सांसद की कोशिश होगी कि रालोद में जाकर टिकट की दावेदारी पेश कर दें। बसपा के अब जो तीन और सांसद भाजपा में एंट्री चाहते हैं, वे काशी क्षेत्र से हैं।

इनमें से एक लालगंज की सांसद संगीता आजाद को तो उनके पति के साथ होम मिनिस्टर अमित शाह के घर के बाहर देखा गया था।

इसके अलावा एक सांसद ने तो पीएम नरेंद्र मोदी से भी हाल ही में मुलाकात की थी। गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी पहले ही सपा में जा चुके हैं और वहां से उन्हें टिकट भी मिल गया है। इसके अलावा दो अन्य सांसद कांग्रेस में एंट्री कर सकते हैं। 

इस तरह बसपा के कुल 10 सांसदों में से 2 ही उसके पास बचेंगे और उनका भविष्य भी अनिश्चित ही है। रितेश पांडेय ने बसपा छोड़ने की जो वजह बताई है, उसमें पहला यह कि पार्टी का उनसे संपर्क ही नहीं था। दूसरा मायावती से भी उनका कोई संवाद नहीं था। यही स्थिति लगभग सांसदों की रही है।

माना जा रहा है कि रितेश पांडेय ने टिकट की इच्छा से भाजपा जॉइन की है। भाजपा की ओर से उन 16 सीटों पर पहले कैंडिडेट घोषित किए जा सकते हैं, जिन पर यूपी में 2019 में वह जीत नहीं सकी थी। ऐसे में इन सीटों पर बसपा के ही उन सांसदों की नजर है, जो पिछली बार चुने गए थे। 

जानकारों का कहना है कि बसपा ने INDIA अलायंस का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है। इसके चलते उसकी संभावनाएं पार्टी सांसदों को कमजोर नजर आ रही हैं। ऐसे में ये लोग भाजपा जैसी पार्टी में जाना चाहते हैं, जहां संभावनाएं अधिक हैं।

गौरतलब है कि 2019 में बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और 10 सीटें हासिल कर ली थीं। हालांकि उन्होंने बाद में गठबंधन तोड़ दिया और अकेले तो बसपा को यूपी विधानसभा चुनाव में महज एक ही सीट मिल पाई थी।

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