जब बिहार में गुस्साई भीड़ ने फाड़ दी थी केंद्रीय कपड़ा मंत्री की धोती, बिना नामांकन किए पड़ा था भागना…

बात 1991 की है। भारी गर्मी वाले मई-जून के महीने में 10वीं लोकसभा के लिए चुनाव हो रहे थे। यह मध्यावधि चुनाव था।

 1989 के दिसंबर में हुए चुनावों के बाद वीपी सिंह ने भाजपा की मदद से गैर कांग्रेसी राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनाई थी।

जनता दल सरकार की अगुवाई कर रहा था। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने और ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने के बाद भाजपा ने देश भर में राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन छेड़ दिया था।

भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने तब सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा निकाली थी।

25 सितंबर, 1990 को आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से रथ यात्रा शुरू की थी।  23 अक्टूबर 1990 को जैसे ही उनका रथ बिहार के समस्तीपुर पहुंचा तो तब की लालू यादव की जनता दल सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।

इससे गुस्साई भाजपा ने जनता दल की अगुवाई वाली केंद्र सरकार यानी वीपी सिंह की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इससे वीपी सिंह की सरकार गिर गई। 

उसके बाद नवंबर 1990 में कांग्रेस और वाम दलों के सहयोग से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने थे। चंद्रशेखर ने कुछ दिनों पहले ही जनता दल के 64 सांसदों के साथ अलग होकर नई समाजवादी जनता पार्टी बना ली थी।

अभी चंद्रशेखर की सरकार को तीन महीने 24 दिन ही हुए थे कि सरकार को बाहर से समर्थन दे रही कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जासूसी करवाने का आरोप लगाकर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इससे चंद्रशेखर सरकार अल्पमत में आ गई।

चंद्रशेखर ने 6 मार्च, 1991 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद देश में दसवीं लोकसभा के लिए चुनाव का बिगुल बज गया।

चंद्रशेखर के साथ ही जनदा दल से पाला बदलकर समाजवादी जनता पार्टी में आने वालों में हुकुमदेव नारायण यादव भी थे, जो 1989 में बिहार के सीतामढ़ी से सांसद चुने गए थे।

चंद्रशेखर ने अपनी सरकार में कद्दावर यादव नेता को कपड़ा मंत्री बनाया था। 1991 में जब फिर से चुनाव हो रहे थे, तब हुकुमदेव नारायण यादव दोबारा सीतामढ़ी सीट से नामांकन का पर्चा दाखिल करने पहुंचे थे लेकिन उन्हें कलेक्टेरियट परिसर में ही जनता का भारी विरोध और गुस्से का सामना करना पड़ा था।

कहा जाता है कि लोग तब यादव से इतने खफा थे कि उन्हें नामांकन करने के लिए जिला समाहरणालय में घुसने तक नहीं दिया था और उनके कपड़े तक फाड़ दिए थे।

भीड़ ने उनकी धोती खोल दी थी। उस वक्त भी यादव चंद्रशेखर की कार्यवाहक सरकार में कपड़ा मंत्री थे। उनके सुरक्षा कर्मी भी यह देखकर भौचक्का रह गए थे। यह भी कहा जाता है कि तब भीड़ नारे लगा रही थी- “जब जनता का जोश जागा, भारत का वस्त्र मंत्री निर्वस्त्र होकर भागा।”

दरअसल, आम जनता हुकुमदेव नारायण यादव से इसलिए खफा थी क्योंकि 1989 में जीतकर दिल्ली जाने के बाद उन्होंने अपने संसदीय इलाके को भुला दिया था। दो साल पहले जब वह जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे तो लोगों ने उन्हें भरपूर समर्थन दिया था।

तब यादव को कुल 3 लाख 35 हजार 796 वोट मिले थे। उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता और तीन बार सांसद रहे नागेंद्र यादव को चुनाव हराया था।

1991 में हुकुमदेव नारायण समाजवादी जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने आए थे। भारी विरोध के बाद उन्हें सीतामढ़ी से अपनी दावेदारी छोड़नी पड़ गई थी।

उन्होंने फिर दरभंगा से चुनाव लड़ा था, जहां उनकी जमानत जब्त हो गई थी, जबकि सीतामढ़ी से जनता दल के टिकट पर युवा उम्मीदवार नवल किशोर यादव ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की थी। 

उन्हें करीब 65 फीसदी वोट मिले थे। राय ने कुल 4 लाख 25 हजार 186 वोट हासिल किए थे। उन्होंने कांग्रेस के रामबृक्ष चौधरी को करारी शिकस्त दी थी।

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