दोनों में थी वासना, बस लड़का बलि का बकरा बना; POCSO केस में बोला हाईकोर्ट…

POCSO यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन ऑफेंसेज एक्ट से जुड़े एक केस में मेघालय हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है।

अदालत का कहना है कि कम उम्र के पीड़िता और आरोपी दोनों में ही वासना और मोह था, लेकिन सिर्फ आरोपी को ही बलि का बकरा बनाया गया।

इतना ही नहीं कोर्ट ने दोषसिद्धि को भी बरकरार रखा है। हालांकि, अदालत ने सजा को कम करने का भी फैसला किया है।

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एस वैद्यनाधन और जस्टिस डब्ल्यू डींगडोह की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी।

बेंच ने पाया कि यह मामला प्रेम प्रसंग का था और दोनों की तरफ से की गई गलती के चलते दुर्भाग्य से सिर्फ आरोपी को ही सजा काटनी पड़ी। अदालत ने POCSO एक्ट की धारा 4 के तहत पुरुष को मिली सजा को बरकरार रखा है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने कहा, ‘…इसमें कोई शक नहीं है आरोपी/अपीलकर्ता पर सजा लगाने के लिए POCSO एक्ट, 2012 के तहत अपराध बनाया गया है। जबकि, तथाकथित पीड़ित लड़की खुशहाल जीवन जी रही है और आरोपी/अपीलकर्ता जेल में है और एक्ट में ऐसे व्यक्ति को माफ करने का कोई प्रावधान नहीं है, जिसने अज्ञानतावश अपराध किया है। कम उम्र में दोनों में ही वासना और मोह था।’

क्या था मामला
अभियोजन पक्ष की तरफ से मामला था कि आरोपी ने पीड़िता (तब 14 वर्ष) का अपहरण किया और त्रिपुरा ले गया। वहां, शारीरिक संबंध बनाए, जो पॉक्सो एक्ट की धारा 4 को आकर्षित करते हैं।

मामला जब अदालत में पहुंचा, तो शिलॉन्ग में जिला एवं सत्र न्यायालय में स्पेशल जज (पॉक्सो) ने उसे धारा 4, IPC की धारा 366ए के तहत दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

इसके बाद शख्स ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। यहां उसके वकील ने कोर्ट को बताया कि मामला प्रेम प्रसंग का था और पीड़िता ने मर्जी से घर छोड़कर आरोपी से शादी की थी।

इधर, स्टेट की तरफ से पेश हुई वकील ने कहा कि पीड़ित लड़की और आरोपी एक-दूसरे को प्यार करते थे और घर छोड़ गए थे। शादी के बाद दोनों ने शारीरिक संबंध बनाए, जिसके बाद पॉक्सो एक्ट 2012 के तहत FIR दर्ज की गई।

कोर्ट ने पाया कि पीड़ित लड़की के सबूतों से ऐसी सामग्री नहीं मिली है, जो बताती हो कि आरोपी उसे जबरन लेकर गया था, क्योंकि उसके धारा 161 सीआरपीसी बयान में उसने माना है कि वह आरोपी के साथ मर्जी से गई थी।

हालांकि, कोर्ट ने यह भी माना कि घटना के समय वह 13 साल से थोड़ी ज्यादा थी और उसकी सहमति की कोई बात नहीं है, लेकिन सजा करने के दौरान इस बात पर विचार किया जा सकता है।

खास बात है कि बेंच ने सजा को आजीवन कारावास से घटाकर सश्रम 10 साल की कर दी और 10 हजार रुपये जुर्माना लगाया। इस दौरान कोर्ट ने यह भी पाया कि पीड़ित लड़की के बयानों में अनियमितताएं थीं। कोर्ट ने यह भी पाया कि यह पूरी तरह से प्रेम प्रसंग का मामला है।

रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने कहा, ‘एक ओर लड़की का कहना है कि जबरन शारीरिक संबंध बनाए गए थे। वहीं, उसने यह बयान दिया है कि आरोपी ने उसे कोई यातना नहीं दी और वह आरोपी के अनुरोध पर खुद ही वैन में बैठी थी।

हालांकि, कोर्ट यह निष्कर्ष निकाल सकती है कि संभावनाएं थीं कि लड़की को हर स्तर पर सिखाया-पढ़ाया गया हो…।’ कोर्ट ने कहा कि उसके पास लड़की के बयान के आधार पर फैसला लेने के अलावा कोई चारा नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *