20 साल से जेल में बंद आतंकी को नहीं मिली शादी के लिए पैरोल, दिल्ली हाई कोर्ट (HC) ने एक बात की इजाजत दी…

दिल्ली हाई कोर्ट ने 20 साल से ज्यादा वक्त से जेल में बंद जैश ए मोहम्मद के दोषी आतंकी को पैरोल देने से इनकार कर दिया है।

कोर्ट ने यह कहते हुए उसे पैरोल देने से इनकार किया कि उसकी मौजूदगी उस क्षेत्र की सुरक्षा-व्यवस्था के हित में नहीं होगी।

उसने कोर्ट को बताया था कि पैरोल लेकर वह जम्मू-कश्मीर में अपने घर जाकर माता-पिता से मिलना चाहता था और शादी करना चाहता था।

यह पैरोल आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सदस्य फिरोज अहमद बट्ट ने मांगी थी।

कोर्ट ने उसकी मांग तो नहीं मानी, लेकिन जेल अधीक्षक को एकबार उसे अपने माता-पिता से वीडियो कॉल पर बात करवाने के लिए जरूरी इंतजाम करने के निर्देश जरूर दिए। 

अधीक्षक को वीडियो कॉल का निर्देश देते हुए जस्टिस स्वर्ण कांत शर्मा ने कहा, ‘इससे एक बेटे के रूप में उसे कुछ हद तक सांत्वना मिल सकती है कि वह अपने माता-पिता को देख सकता है और उनसे बात कर सकता है, भले ही वर्चुअली ही सही।’

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि फिरोज अहमद भट्ट की उम्र करीब 44 हो चुकी है, वह 20 साल से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में हैं और शादी करना चाहता है।

उसके बुजुर्ग माता-पिता उसके लिए लड़की ढूंढ रहे हैं, वकील ने प्रार्थना करते हुए कहा कि उसे पैरोल पर रिहा किया जाए।

हालांकि राज्य सरकार के वकील ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया कि आतंकवादी गतिविधियों में शामिल और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने से जुड़े मामलों के दोषियों को पैरोल नहीं दी जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि इस केस का एक सह-आरोपी पैरोल मिलने के बाद फरार हो गया था और आतंकी संगठन में शामिल हो गया था। 

पैरोल की अपील पर सुनवाई के दौरान जज ने कहा, ‘इस अदालत की राय है कि याचिकाकर्ता को एक जघन्य अपराध में दोषी ठहराया जाना और क्षेत्र में उसकी उपस्थिति के बारे में वास्तविक आशंका होना बड़े पैमाने पर सुरक्षा हित के लिए हानिकारक है, साथ ही इस तथ्य के साथ कि एक पैरोल पर रिहा होने के बाद आतंकवादी संगठन में शामिल हो गया था और बाद में एक मुठभेड़ में मारा गया। ये ऐसे कारक हैं जो पैरोल के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन के रास्ते में आ रहे हैं।’

जस्टिस शर्मा ने आगे कहा, ‘इसलिए, उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए, यह अदालत इसे पैरोल देने के लिए उपयुक्त मामला नहीं मानती है।’

अदालत ने बताया कि दिल्ली जेल नियमों के नियम 1211 के अनुसार, सक्षम प्राधिकारी के विवेक और विशेष परिस्थितियों को छोड़कर, देशद्रोह और आतंकवादी गतिविधियों के लिए दोषी ठहराए गए लोगों को पैरोल नहीं दी जानी चाहिए।

इसके बाद अदालत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की अवंतीपुरा पुलिस से प्राप्त एक रिपोर्ट में, जहां भट्ट रहना चाहता था, उसमें उल्लेख किया गया है कि एक उचित आशंका है कि अगर उसे रिहा किया गया, तो वह भाग जाएगा और आतंकवादी संगठनों में शामिल हो जाएगा।

रिपोर्ट में कहा गया कि भट्ट की पैरोल पर रिहाई क्षेत्र में समग्र सुरक्षा परिदृश्य के लिए हानिकारक होगी।

भट्ट को 2003 में एक आतंकवादी वारदात के मामले में गिरफ्तार किया गया था और आतंकवाद निरोधक अधिनियम, भारतीय दंड संहिता और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत किए गए अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

भट्ट के जिस साथी का कोर्ट में जिक्र हुआ उसका नाम नूर मोहम्मद तांत्री था, उसे पैरोल पर रिहा किया गया था और जेल लौटने के बजाय, वह फिर से एक आतंकवादी संगठन में शामिल हो गया और 2017 में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया।

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