12 बजे से जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त शुरू, 3 दुर्लभ योग में होगा कान्हा का जन्म…

प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):

अजन्मे के 5251वें जन्मदिन पर इस बार 45 मिनट द्वापर जैसा संयोग रहेगा।

ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि 26 अगस्त की मध्यरात्रि 12:01 से 12:45 बजे तक 45 मिनट के लिए बन रहे इस खास संयोग में पूजा करने पर भक्तों के सभी मनोरथपूर्ण होंगे।

साथ ही, जयंती योग और सर्वार्थ सिद्धि योग जन्माष्टमी को और भी खास बना रहा है। ऐसे में जन्माष्टमी की शुभता और भी बढ़ जाएगी।

ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि कृष्ण जन्माष्टमी पर जयंती योग, बव करण, वृष लग्न, रोहिणी नक्षत्र के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बना रहेगा।

इस दिन श्रीकृष्ण के साथ माता देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा की पूजा अर्चना होगी।

26 अगस्त, सोमवार को सप्तमी तिथि दिन 8:20 बजे समाप्त होकर अष्टमी तिथि लग जाएगी तथा रात्रि 09:10 बजे से रोहिणी नक्षत्र भी प्रारम्भ हो जाएगा। इस प्रकार अष्टमी तिथि-रोहिणी नक्षत्र ‘जयन्ती योग’ बना रहा है।

तीन दुर्लभ योगों से बरसेगी कृष्ण-कृपा

महायोगी श्रीकृष्ण इस बार द्वापर युगीन दुर्लभ संयोग के बीच सोमवार को अवतरित होंगे। ज्योतिषाचार्य कामेश्वर चतुर्वेदी ने बताया कि मथुरा में चंद्रमा उदय रात 11:24 बजे निशीथ बेला में होगा।

ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण 5250 वर्ष पूर्ण करके 5251वें वर्ष में प्रवेश करेंगे। द्वापर युग में भी भगवान श्रीकृष्ण भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र की निशीथ बेला में मथुरा में कंस के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से अवतरित हुए थे।

उस समय वृषभ लग्न एवं रोहिणी नक्षत्र, उच्च राशि के चंद्रमा थे। इस साल जन्माष्टमी के दिन भी चंद्रमा वृषभ राशि में और रोहिणी नक्षत्र में होगा। साथ ही, सर्वार्थ सिद्धि योग, गजकेसरी योग और शश राजयोग का भी निर्माण हो रहा है।

कृष्ण जन्माष्टमी इस बार चंद्रवार पर

पं. अमित भारद्वाज कहते हैं कि इस बार वृष राशि में उच्च के चंद्रमा तो हैं, पर बुधवार नहीं है। लेकिन अजब संयोग है कि 26 अगस्त को जन्माष्टमी पर सोमवार है। सोमवार को चंद्रवार भी कहा जाता है।

सोम का पर्याय चंद्र है। यानी प्रभु श्री कृष्ण का जन्मोत्सव इस बार अपने पूर्वज के वार अर्थात् चंद्रवार को मनेगा। रोहिणी चंद्रमा का सबसे प्रिय नक्षत्र व पत्नी है।

इस कारण श्रीकृष्ण ने रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया। चंद्र देव को अभिलाषा थी कि नारायण जब मेरे वंश में जिस समय अवतार लें, उस समय मैं उनके दर्शन कर सकूं।

इस अभिलाषा को पूर्ण करते हुए नारायण ने रात्रि बेला में कृष्ण रूप में अवतार लिया। श्रीमद्भागवत व अन्य पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि जिस समय पृथ्वी पर नारायण ने कृष्ण अवतार लिया, उसी समय आकाश में चंद्र देव उदय हुए।

पांच हजार से अधिक भंडारों में व्रत के भी आहार

कृष्ण जन्मोत्सव पर श्रद्धालुओं की सेवा के लिए ब्रजवासियों ने कदम-कदम पर भंडारे लगाने की तैयारी की है। जन्मोत्सव पर शामिल होने के लिए, देश ही नहीं विदेशों से भी भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचेंगे।

मथुरावासी भी श्रद्धालुओं के स्वागत में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते। जगह-जगह भंडारों का आयोजन कर महाप्रसाद भेंट करने की तैयारी है। श्रद्धालुओं का उपवास रहने के कारण समा के चावल की खीर और आलू-दही आदि की के साथ कढ़ी और चावल भी श्रद्धालुओं को भेंट किया जाएगा।

वृंदावन से वाशिंगटन तक जन्माष्टमी का उल्लास

कृष्ण जन्माष्टमी का उल्लास वृंदावन से वाशिंगटन तक भक्तों के सिर चढ़कर बोल रहा है। जन्माष्टमी पर वृंदावन में बने बांसुरी, मंदिर, सिंहासन और झूले की डिमांड काफी रही।

जन्माष्टमी पर अब तक करीब सौ करोड़ से अधिक के सामान बिक चुके हैं। अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, सिंगापुर में भारतीय मूल के लोग लड्‌डू गोपाल को वृंदावन में बने मंदिरों में ही विराजमान करना चाहते हैं, इसलिए ऑनलाइन डिमांड खूब रही।

अनूठी परंपरा : गोकुल में जन्म से पूर्व छठी पूजन

पं. अमित भारद्वाज बताते हैं कि जन्माष्टमी पर गोकुल में कृष्ण जन्मोत्सव के पूर्व दिवस पर बालकृष्ण का छठी पूजन होता है। विदित हो कि किसी भी बालक का छठी पूजन जन्म के छठवें दिन होता है, लेकिन गोकुल में जन्मोत्सव से पूर्व। पुष्टिमार्गीय वल्लभ कुल संप्रदाय के मंदिरों में भी यह परंपरा निभाई जाती है। गोकुल में नंद किले के अलावा घर-घर में छठी पूजन एक दिन पूर्व होता है।

एक कथानक के अनुसार, मां यशोदा व नंदबाबा बालक के वात्सल्य में ऐसे मगन हो गए कि छठी पूजना ही भूल गए। जब बालकृष्ण का पहला जन्मदिन आया तब उनको याद आया कि लाला की छठी नहीं पूजी।

इसलिए उन्होंने प्रथम जन्म दिवस से पूर्व कान्हा की छठी पूजी। यह परंपरा आज भी गोकुल में परंपरागत रूप मनायी जाती है।

कृष्ण जन्माष्टमी 2024 मुहूर्त

  • पूजा का शुभ समय 26 अगस्त की मध्यरात्रि 12:01 से 12:45 बजे तक का होगा
  • जयंती योग के साथ गजकेसरी, शश राजयोग और सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा
  • बव करण, वृषलग्न व रोहिणी नक्षत्र के दुर्लभ योगों से बरसेगी गोपाल कृपा

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