मुंबई के मशहूर डब्बावाले अब किताबों में, नौवीं कक्षा के बच्चे जानेंगे इनकी कहानी…

मुंबई के प्रसिद्ध डब्बावाले की कहानी अब जल्द ही घर-घर तक पहुंचेगी। केरल सरकार ने इन्हें स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का फैसला किया है।

राज्य की पाठ्यपुस्तक में पांच-पृष्ठ के एक अध्याय में डब्बावालों की कहानी नौवीं कक्षा के अंग्रेजी पाठ्यक्रम में शामिल की गई है।

‘टिफिन कैरियर की गाथा’ शीर्षक वाले इस चैप्टर के लेखक ह्यूग और कोलीन गैंटज़र हैं जो अपनी यात्रा की कहानियां लिखते हैं।

केरल राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (SCERT) ने 2024 के लिए अपने नए पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में ‘डब्बावालों’ की प्रेरणा भरी कहानी को शामिल किया है।

इस अध्याय में मुंबई की डब्बावाला सेवा की शुरुआत कैसी हुई इसका जिक्र किया गया है। यह सर्विस 1890 में शुरू हुई थी जब पहले टिफिन कैरियर महादेव हवाजी बच्चे ने दादर से फोर्ट मुंबई तक लंचबॉक्स पहुंचाया था।

किताब में इसके बारे में लिखा है, “1890 में दादर में रहने वाली एक वृद्ध पारसी महिला ने महादेव हवाजी बच्चे से बात की। वह चाहती थी कि वह अपने पति के लिए टिफिन कैरियर लाने में उसकी मदद करें जो बॉम्बे में काम करते थे। यहीं से डब्बावालों की शुरुआत हुई।” किताब में आगे लिखा है, “उसके बाद से यह स्व-निर्मित भारतीय संगठन एक विशाल नेटवर्क में विकसित हो गया है जिसकी अविश्वसनीय कुशलता ने अंतरराष्ट्रीय बिजनेस स्कूलों और यहां तक ​​कि इंग्लैंड के राजकुमार (अब राजा) चार्ल्स की भी तारीफ हासिल की है।”

कई किताबों, फिल्मों का हिस्सा

मुंबई के डब्बावाले अब समर्पण और उत्कृष्टता का प्रतीक बन गए हैं जो वैश्विक स्तर पर बिजनेस स्कूलों और शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

कई फिल्मों, डॉक्यूमेंट्री, किताबों और रिसर्च ने उनके काम को और मशहूर बना दिया है। यही नहीं उनके काम को समर्पित एक कॉमिक बुक भी है जिसे मुंबई के कलाकार अभिजीत किनी ने 2019 में तैयार किया था। डब्बावाले भारत और विदेशों में आईआईटी और आईआईएम सहित कई प्रतिष्ठित संस्थानों में व्याख्यान देने के लिए भी जाते हैं।

डब्बावालों ने कहा शुक्रिया

हालांकि कोविड-19 महामारी ने डब्बावालों के काम को बुरी तरह प्रभावित किया जिससे उनकी संख्या घटकर लगभग 2,000 रह गई है।

फिलहाल केवल रोजगार की जरूरत वाले लोग ही यह काम कर रहे हैं। केरल स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने के बारे में जानने के बाद डब्बावालों ने राज्य के शिक्षा विभाग को एक मेल के माध्यम से अपना आभार व्यक्त किया। उन्होंने उनकी लंबे समय से चली आ रही विरासत को दी गई मान्यता की सराहना की।

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