दुनिया के ऊपर एक सुपरबग का खतरा मंडरा रहा है।
यह सुपरबग अगले 25 साल में करीब 40 मिलियन लोगों की जान ले सकता है। सबसे बड़ा खतरा यह है कि इस सुपरबग पर दवाओं का भी कोई असर नहीं होता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर समय रहते इस गंभीर समस्या पर काम नहीं किया गया तो परेशानी काफी ज्यादा बढ़ सकती है।
इस सुपरबग को एमआर नाम दिया गया है और इसके ऊपर बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक दवाओं का भी असर नहीं हो रहा। इसके चलते इनका इलाज करना भी कठिन है।
लैंसेट जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक 1990 से 2021 के बीच इस सुपरबग से एक मिलियन से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं।
नवजात शिशुओं में बचाव और नियंत्रित करने के उपाय के चलते संक्रमण में 50 फीसदी की कमी आई है। लेकिन जिन बच्चों में इस सुपरबग का संक्रमण हो जाता है, उनका इलाज करना बेहद मुश्किल हो जा रहा।
वहीं, इस सुपरबग के चलते 70 साल से अधिक उम्र वालों की मौत में 80 फीसदी का इजाफा हुआ है। यह आंकड़ा भी साल 1990 से 2021 के बीच का है। लैंसेट की स्टडी के मुताबिक इस सुपरबग से होने वाली मौतें 2021 में दोगुनी होकर 130,000 तक पहुंच गई हें।
लगातार बढ़ रहा खतरा
शोधकर्ताओं ने बताया है कि इस सुपरबग से मौत का खतरा लगातार बढ़ रहा है। वर्तमान ट्रेंड्स के आधार पर साल 2050 तक एमआरएस से होने वाली डायरेक्ट मौतों में 67 फीसदी का इजाफा हो सकता है।
शोध में बताया गया है कि एएमआर के चलते अगली तिमाही सदी में सीधे तौर पर 39 मिलियन लोगों को अपना शिकार बना चुका होगा।
इस तरह से कुल 169 मिलियन मौतें हो चुकी होंगी। हालांकि इसमें कुछ कमी भी हो सकती है, लेकिन इसके लिए शर्त यह है कि खतरनाक संक्रमणों से बचाव की दिशा में जरूरी कदम उठाने होंगे। अगर इस दिशा में ढंग से काम किया गया तो 2050 तक 92 मिलियन लोगों की जान बचाई जा सकती है।
शोध के सह-लेखक मोहसिन नगवी ने कहा कि एएमआर दुनिया के स्वास्थ्य के लिए लंबे समय से खतरा रहा है। अब यह खतरा बढ़ता ही जा रहा है।
शोधकर्ता 22 रोगजनकों, दवाओं और रोगजनकों के 84 संयोजनों और मेनिन्जाइटिस जैसे 11 संक्रामक सिंड्रोम की स्टडी करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे। इसमें 204 देशों और क्षेत्रों में 520 मिलियन लोगों के पर्सनल रिकॉर्ड शामिल किए गए हैं।