वास्तु शास्त्र में दिशाओं का क्या महत्व है?…

प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):

वास्तु शास्त्र में दिशाओं को बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है।

वास्तु के अनुसार, 8 दिशाएं यानी 4 मुख्य दिशाएं(पूर्व,पश्चिम,उत्तर व दक्षिण) के साथ चार कोणीय दिशा ईशान कोण( उत्तर-पूर्व),आग्नेय कोण(दक्षिण-पूर्व), नैऋत्य कोण(दक्षिण-पश्चिम),वायव्य कोण(उत्तर-पश्चिम) के आधार पर वास्तु की गणना की जाती है।

वास्तु में हर दिशा का विशेष महत्व है। अलग-अलग दिशाओं का संबंध अलग ग्रहों से होता है। मनुष्य के जीवन में सुख-शांति के लिए दिशाओं को ठीक रखना आवश्यक माना गया है। आइए जानते हैं कि वास्तु में प्रत्येक दिशा का क्या महत्व है?

पूर्व दिशा :पूर्व दिशा के स्वामी ग्रह भगवान सूर्य और देवराज इन्द्र माने गए हैं। यह दिशा अच्छे स्वास्थ्य, बुद्धि, धन, सुख-सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।

मान्यता है कि गृह-निर्माण में घर के पूर्व दिशा का कुछ स्थान खुला छोड़ देना चाहिए। इस स्थान को नीचा रखना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा न होने पर घर के मुख्य सदस्य का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।

पश्चिम दिशा :पश्चिम दिशा के स्वामी ग्रह शनि व वरुणदेव हैं। इस दिशा को मान-सम्मान, सफलता, अच्छे भविष्य और संपन्नता का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिशा में गढ्ढा,दरार,नीचा या दोषपूर्ण रहने पर मानसित कनाव की स्थिति बन सकती है। कार्यों में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

उत्तर दिशा :उत्तर दिशा के स्वामी ग्रह बुध व कुबेर देवता हैं। यह दिशा जीवन में सभी प्रकार के सुख को प्रदान कराती है। इस दिशा को बुद्धि,ज्ञान,चिंतन,मनन विद्या,धन के लिए शुभ माना जाता है।

उत्तर दिशा में खाली स्थान छोड़कर गृह निर्माण करने से सभी प्रकार की भौतिक सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

दक्षिण दिशा :दक्षिण दिशा के स्वामी ग्रह मंगल और यम है। इस दिशा को सफलता, यश, पद-प्रतिष्ठा और धैर्य का प्रतीक माना गया है। पिता के सुख का कारक भी यह दिशा माना जाता है। दक्षिण दिशा को जितना भारी रखेंगे, उतना ही लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

आग्नेय कोण :वास्तु में आग्नेय कोण के स्वामी ग्रह शुक्र और अग्नि देवता माने गए हैं। इस दिशा का संबंध स्वास्थ्य से होता है। यह दिशा निद्रा व उचित शयन सुख को दर्शाता है।

आग्नेय कोण में अंडरग्राउंड टैंक का होना अच्छा नहीं माना जाता है। इससे स्वास्थ्य खराब रहता है।

नैऋत्य कोण : इस दिशा के स्वामी राहु और नैऋति नामक राक्षसी है। यह दिशा असुर, बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति या भूत पिशाच की दिशा है। इसलिए वास्तु में इस दिशा को कभी खाली न रखने की सलाह दी जाती है।

वायव्य कोण :इस दिशा को चंद्रदेव और पवनदेव का वास स्थान माना गया है। यह मित्रता और शत्रुता की ओर संकेत देते हैं। इस दिशा को मानसिक विकास का दिशा माना जाता है। इस दिशा में किसी तरह का दोष होना शत्रुओं की संख्या में वृद्धि का संकेत माना जाता है।

ईशान कोण : ईशान कोण के स्वामी ग्रह देवगुरु बृहस्पति माने जाते हैं। इस दिशा को बुद्धि,ज्ञान,विवेक,धैर्य और साहस का प्रतीक माना गया है।

वास्तु के अनुसार, ईशान कोण की साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए। इस दिशा को खुला नीचा व निर्माण कार्य कम से कम करवाना चाहिए। इस दिशा के दोष रहित होने पर अध्यात्मिक,मानसिक व आर्थिक संपन्नता आती है। वास्तु के मुताबिक, इस दिशा में शौचालय,सेप्टिक टैंक या डस्टबिन बिल्कु नहीं रखना चाहिए।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य है और सटीक है। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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